शाकाहारी हुई दुनिया तो हर साल 70 लाख तक कम मौतें

शाकाहारी हुई दुनिया तो हर साल 70 लाख तक कम मौतें

दुनिया भर में 12 जून का दिन विश्व मांस मुक्त दिवस के रूप में मनाया गया. अगर दुनिया अचानक हमेशा के लिए शाकाहारी हो जाए तो इसका असर क्या होगा?

हम यहां बता रहे हैं कि इससे जलवायु, वातावरण, हमारी सेहत और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

यदि 2050 तक दुनिया शाकाहारी हो गई तो हर साल 70 लाख कम मौतें होंगी और अगर पशु से जुड़े उत्पाद बिल्कुल नहीं खाए जाते हैं तो हर साल 80 लाख लोग कम मरेंगे.
ऑक्सफर्ड मार्टिन स्कूल फ्यूचर ऑफ फूड प्रोग्राम में एक रिसर्चर मार्को स्प्रिंगमैन के मुताबिक खाद्य समाग्रियों से जुड़े उत्सर्जन में 60 फ़ीसदी की गिरावट आएगी. यह रेड मीट से मुक्ति के कारण होगा क्योंकि रेड मीट मिथेन गैस उत्सर्सिज करने वाले पशुओं से मिलता है.
हालांकि इससे विकासशील दुनिया में किसान बुरी तरह से प्रभावित होंगे. शुष्क और अर्धशुष्क इलाक़ों को पशुपालन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. अफ़्रीका में सहारा के पास सहेल लैंड है और यहां रहने वाले लोग पशुपालन पर निर्भर हैं. ये स्थायी रूप से कहीं और विस्थापित होने के लिए मजबूर होंगे. इससे इनकी सांस्कृतिक पहचान ख़तरे में पड़ेगी.
चारागाहों को लेकर फिर से सोचना होगा. जंगल जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित होंगे. ख़त्म हो रही जैव विविधता फिर से वापस आएगी. जंगल में एक किस्म का संतुलन बनेगा. पहले शाकाहारी पशुओं को बचाने के लिए हिंसक जानवरों को मार दिया जाता था.
जो पशुओं से जुड़ी इंडस्ट्री में लगे हैं उन्हें अपने नए ठिकाने और करियर की तलाश करनी होगी. वे कृषि, बायोऊर्जा और वनीकरण की तरफ़ रुख कर सकते हैं. अगर इन्हें दूसरा रोजगार नहीं मिलता है तो व्यापक पैमाने पर लोग बेरोजगार होंगे और इससे पारंपरिक समाज में भारी उठापटक की स्थिति होगी.
कुछ मामलों में इसका जैवविविधता पर बुरा असर भी पड़ेगा. भेड़ों की चारागाहों वाले कई शताब्दियों से ज़मीन को आकार देने में मदद मिलती है. ऐसे में पर्यावरण की वजह से पशुओं को रखने के लिए किसानों को भुगतान करना होगा.
दुनिया शाकाहारी होती है तो फिर क्रिसमस टर्की (एक तरह का पक्षी जिसे लोग खाते हैं) नहीं रहेगा. शाकाहारी होने का मतलब है कि परंपराएं बुरी तरह से प्रभावित होंगी. दुनिया भर में कई ऐसे समुदाय हैं जो विवाह और उत्सव में मांस उपहार में देते हैं. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के बेन फिलन का कहना है कि इसलिए अक्सर इस तरह की कोशिश कम पड़ जाती है.
मांस की खपत नहीं होने की वजह से दिल की बीमारी, डायबिटीज़, स्ट्रोक और कुछ तरह के कैंसर की आशंका नहीं रहेगी. ऐसे में दुनिया भर की दो या तीन फ़ीसदी जीडीपी जो मेडिकल बिल पर खर्च होती है वो बच जाएगी.
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लेकिन हम लोगों को पोषण की कुछ वैकल्पिक चीज़ें के बदले ही मांस को हटाना होगा. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर के दो अरब लोग कुपोषित हैं. अनाज के मुकाबले मांस और उससे जुड़े उत्पादों से लोगों को ज़्यादा पोषण मिलता है.

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