चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

भारत शुक्रवार की रात इतिहास रचने से दो क़दम दूर रह गया. अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव के क़रीब उतरता.

इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर नहीं. कहा जा रहा है कि दक्षिणी ध्रुव पर जाना बहुत जटिल था इसलिए भी भारत का मून मिशन चन्द्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया.

शुक्रवार की रात चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर बस उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने से पहले चंद्रमा की सतह से दूरी महज 2.1 किलोमीटर बची थी.

प्रधानमंत्री मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरु पहुंचे थे. लेकिन आख़िरी पल में चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफ़र अधूरा रह गया.

क्या इसरो की यह हार है या इस हार में भी जीत छुपी है? आख़िर चंद्रयान-2 की 47 दिनों की यात्रा अधूरी आख़िरी पलों में क्यों रह गई? क्या कोई तकनीकी खामी थी?

इन सारे सवालों को बीबीसी संवाददाता रजनीश कुमार ने साइंस के मशहूर पत्रकार पल्लव बागला के सामने रखा. पल्लव बागला के ही शब्दों में पढ़िए सारे सवालों के जवाब?

आख़िरी पलों में विक्रम लैंडर का संपर्क ग्राउंड स्टेशन से टूट गया. इसरो के चेयरमैन डॉ के सिवन ने बताया कि जब इसरो का विक्रम लैंडर 2.1 किलोमीटर चाँद की सतह से दूर था, तभी ग्राउंट स्टेशन से संपर्क टूट गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के कंट्रोल रूम से वैज्ञानिकों से बात की और तब उन्होंने संकेत दिया कि कहीं न कहीं चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चाँद की सतह पर उतरने में जल्दी कर रहा था. अंतिम क्षणों में कहीं न कहीं कुछ ख़राबी हुई है जिससे पूरी सफलता नहीं मिल पाई.

विक्रम लैंडर से भले निराशा मिली है लेकिन यह मिशन नाकाम नहीं रहा है, क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चाँद की कक्षा में अपना काम कर रहा है. इस ऑर्बिटर में कई साइंटिफिक उपकरण हैं और अच्छे से काम कर रहे हैं. विक्रम लैन्डर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग था और इसमें ज़रूर झटका लगा है.

इस हार में जीत भी है. ऑर्बिटर भारत ने पहले भी पहुंचाया था लेकिन इस बार का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक है. चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर से चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक और साइंटिफिक उपकरणों से लैस है.

विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग भारत के लिए पहली बार था और मुझसे डॉ सिवन ने कहा भी था कि इसके आख़िरी 15 मिनट दहशत के होंगे. यह एक प्रयोग था और इसमें झटका लगा है. ज़ाहिर है हर प्रयोग कामयाब नहीं होते.

जैसा कि मेरा अनुमान है कि शुक्रवार की रात 1.40 बजे विक्रम लैंडर ने चाँद की सतह पर उतरना शुरू किया था और क़रीब 2.51 के आसपास संपर्क टूट गया. यह सही बात है कि चाँद सतह के दक्षिणी ध्रुव पर कोई भी रोबोटिक लैंडर नहीं उतर पाया है.

लेकिन इसरो के चेयरमैन डॉ के सिवन ने मुझसे बताया था कि दक्षिणी ध्रुव पर उतरना हो या इक्वोटेरिल प्लेन पर उतरना हो या नॉर्दन में उतरना हो सबमें मुश्किलात एक ही हैं. इसरो के चेयरमैन ने साफ़ कहा था कि दक्षिणी ध्रुव हो या कोई और ध्रुव सबमें उतनी ही चुनौतियां थीं.

ये बिल्कुल सही बात है कि चंद्रयान-2 को बिल्कुल नई जगह पर भेजा गया था ताकि नई चीज़ें सामने आएं. पुरानी जगह पर जाने का कोई फ़ायदा नहीं था इसलिए नई जगह चुनी गई थी.

ऑर्बिटर तो काम कर रहा है. चाँद पर पानी की खोज भारत का मुख्य लक्ष्य था और वो काम ऑर्बिटर कर रहा है. भविष्य में इसका डेटा ज़रूर आएगा.

लैंडर विक्रम मुख्य रूप से चाँद की सतह पर जाकर वहाँ का विश्लेषण करने वाला था. वो अब नहीं हो पाएगा. वहाँ की चट्टान का विश्लेषण करना था वो अब नहीं हो पाएगा. विक्रम और प्रज्ञान से चाँद की सतह की सेल्फी आती और दुनिया देखती, अब वो संभव नहीं है. विक्रम और प्रज्ञान एक दूसरे की सेल्फी भेजते, अब वो नहीं हो पाएगा.

यह एक साइंटिफिक मिशन था और इसे बनने में 11 साल लगे थे. इसका ऑर्बिटर सफल रहा और लैंडर, रोवर असफल रहे. इस असफलता से इसरो पीछे नहीं जाएगा और प्रधानमंत्री मोदी ने भी यही बात दोहराई है. इसरो पहले समझने की कोशिश करेगा कि क्या हुआ है, उसके बाद अगले क़दम पर फ़ैसला करेगा.

अमरीका, रूस और चीन को चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग में सफलता मिली है. भारत शुक्रवार की रात इससे चूक गया. सॉफ्ट लैन्डिंग का मतलब होता है कि आप किसी भी सैटलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित उतारें और वो अपना काम सुचारू रूप से कर सके. चंद्रयान-2 को भी इसी तरह चन्द्रमा की सतह पर उतारना था लेकिन आख़िरी क्षणों में सभव नहीं हो पाया.

दुनिया भर के 50 फ़ीसदी से भी कम मिशन हैं जो सॉफ्ट लैंडिंग में कामयाब रहे हैं. जो भी अंतरिक्ष विज्ञान को समझते हैं वो ज़रूर भारत के इस प्रयास को प्रोत्साहन देंगे. इसरो का अब बड़ा मिशन गगनयान का है जिसमें अंतरिक्षयात्री को भेजा जाना है

ITI Student Resume Portal

रिज्यूम पोर्टल का मुख्य उद्देश्य योग्य छात्रों की जानकारी सार्वजनिक पटल पर लाने की है जिससे जिन्हें आवश्यकता हो वह अपने सुविधा अनुसार छात्रों का चयन कर सकते हैं

ITI Student Resume

Search engine adsence